हर बार क्यों
हर बार क्यों
हर एहसास में रंग भर्ती हूं,
हर पकवान में प्यार परोसती हूं,
दीवारों को घर बनाती हूं,
अपने आँखों से सच्चाई परखती हूं,
फिर भी हर बार क्यों अपनी
कीमत आसूं की बूंद में मिलती है।
हर एहसास में रंग भर्ती हूं,
हर पकवान में प्यार परोसती हूं,
दीवारों को घर बनाती हूं,
अपने आँखों से सच्चाई परखती हूं,
फिर भी हर बार क्यों अपनी
कीमत आसूं की बूंद में मिलती है।