बूढ़ा किसान
बूढ़ा किसान
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आरजू मेरी चढ़ी परवान
सरहद पर नहीं कोई हमदर्दी का निशान।
क्यों दुनियाा हो गई इतनी बेईमान,
अपने हक केेेेे लिए दर-दर भटक रहा बूढ़ा किसान।।
नंगे पांव भूखे पेट खेतों की पगडंडियों पर किया विश्राम,
क्योंं? मेरी मेहनत का मुझे मिल रहा यह इनाम
अपने हक के लिए दर-दर भटक रहा यह बूढ़ा किसान
दूर चला आया छोड़ अपने खेतों को बीवी बच्चे और मकान।
क्यों नहीं सरकार को मेरी बेबसी का ध्यान,
सिपाहियोंं की लाठी, आंसू के गोले अपना देश बना मसान।।
अपने हक के लिए अपने ही मुल्क में घुुट घुट कर क्योंं
मर रहा बूढ़ा किसान।।