हक़ीक़त
हक़ीक़त
मझदार में फंसी नाँवों को चलाया नहीं करते
अल्फाजो़ं से कभी रूह को जगाया नहीं करते
बवंडर में फसें पेड़ों को झुकाया नहीं करते
जीत के पहले जीत का जश्न मनाया नहींं करते।
ज़िंदगी का दामन छोड़, बहारें गुम हो जाती हैं
थक कर चलना तो सब को है, पर नज़रें रंग लाती है
नजा़रों में नहींं रंग, नज़रें बिन वे बेमानी हैं
अपनों के संग गिर कर उठना, थोड़े ना परेशानी है।