तीन तत्व– आग, हवा और जल
तीन तत्व– आग, हवा और जल
एक ज़माने की बात थी, रोज़ एक दिन और एक रात थी
हर सुबह सवेरा होता था, हमारा चाँद और हर तारा सोता था
एक आग का गोला उगता था, रंग सिकोड़कर सपनों के सुंदर
हर तिनके में खाक भिगोता था, यह ताकत की अनुराग थी
उबलते ज्वाला की अधूरी दास्तान, एक ज़माने की बात थी
हर ज़माने के साथ में, मैं उड़ता हुआ आता हूँ
तूफान हूँ मैं, महज़ आँधी ना समझना
बहती हवा हूँ मैं, भिगी ज़िदगानी ना समझना
आसमानी हूँ मैं, इंसानी ना समझना
तुम्हारी ज़िंदगानी हूँ मैं, खुद को खुदाई ना समझना
इस ज़माने का राज़ है, बहता हुई आवाज़ है
मोहकता की, मादकता की, हुकूमत की अरदास है
समर्पण का, समापन का, संरक्षण का श्रृंगार है
इसको पहचानो तो साज़ है और ना जानो तो राज़ है
जल, नीर, वारि, अंबुज हैं नाम, काम और दाम यार
एक ज़माने की बात थी, इस ज़माने की राज़ है।