किरनों सी आज़ादी
किरनों सी आज़ादी
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सूरज जब पूरब से उगे,
सोई आशाओं को आज़ादी दे
पेड़ों की, पत्तों की छाया
हरियाली ने दिन सजाया|
बहती नदी की है यह धारा,
जिसने सपनों का पर फैलाया
ज्यों सागर की नीली गहराई,
उतनी लहरों की तनहाई|
उड़ जाते पंछी पर फैलाए
आसमान के हद के साये
चाँद-तारों तक पहुँचने की चाह है
आज़ादी की यही बरखा है|