हमेशा
हमेशा
गलतफहमियां होती हैं
पर स्व विश्लेषण पर
दृष्टि मस्तिष्क समय अनुभव
ये सब ज्ञान का स्रोत होते हैं !
एक ही व्यक्ति सबके लिए
एक सा नहीं होता
एक सा व्यवहार जब सब नहीं करते
तो एक सा व्यक्ति कैसे मिलेगा !
पर प्रतिस्पर्द्धा लिए
उसके निजत्व को उछालना
अपनी विकृत मंशाओं की
अग्नि को शांत करना
क्या सही है !
पाप और पुण्य !
उसके भी सांचे
समय की चाक पर होते हैं
जैसे -
राम ने गर्भवती सीता को वन भेजा
हम आलोचना करने लगे
सोचा ही नहीं
कि हम राम होते तो क्या करते,
यज्ञ में सीता की मूर्ति रखते
या वंश का नाम दे दूसरा विवाह रचाते !
१४ वर्ष यशोदा के आँगन में बचपन जीकर
कृष्ण मथुरा चले
हमने कहा -
राज्य लोभ में कृष्ण
माखन का स्वाद भूल चले
सोचा ही नहीं
माँ देवकी को मुक्त कराने के लिए
माँ यशोदा से दूर हुए।
सारे आंसू जब्त किये कृष्ण
यूँ ही तो गीता नहीं सुना सके !
अब इसमें अहम् सवाल य
े है
कि हम क्या करते -
संभवतः यशोदा और देवकी को
वृद्धाश्रम में रखते !
हम दूसरों का आंकलन
करने में माहिर हैं...
उसके कार्य के पीछे की
नीयत तक बखूबी भांप लेते हैं,
उसे क्या सजा होनी चाहिए -
यह भी तय कर लेते हैं
इतनी बारीकी से हम खुद को
कभी तौल नहीं पाते !
क्योंकि ....
भले ही हमने जघन्य हत्याएं की हों,
अतिशय आक्रोश में
अपनी बात मनवाने के लिए
माँ के चेहरे पर
पाँचों उँगलियों के निशां बनाये हों
भले ही हम एक बार भी न सोच पाए हों
कि इस माँ ने नौ महीने हमें गर्भ में रखा
हम गलत होते ही नहीं..
क्योंकि विश्लेषण हम
सामनेवाले का ही करते हैं
आत्मविश्लेषण हमारे
गले मुश्किल से उतरता है ...
हम दरअसल औरंगजेब की सोच रखते हैं
पंच परमेश्वर भी हमारी तराजू पर होता है
हमसे बढ़कर दूसरा कोई ज्ञानी नहीं होता
हो ही नहीं सकता ...
यह अपना कंस , शकुनी सा ' मैं '
हमेशा सही होता है !
हमेशा......।