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Surendra kumar singh

Abstract

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Surendra kumar singh

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हम मनुष्य हैं

हम मनुष्य हैं

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बोल है

हम मनुष्य हैं

गीतकार है समय

धुनी है बारहमासी

गायक हम सब भारतवासी।


सावन औऱ हरा हो जाता है

सुन सुन ये बोल कि

हम मनुष्य हैं।

गीत ही नहीं एक खबर भी है

ठीक ठीक गीत की तरह कि

हम मनुष्य हैं।


चांदनी आकाश

धरती से उतरकर

धरती पर आती है सुनने

हमारा ये गीत कि

हम मनुष्य हैं।


रात खुद ही गुनगुनाती है

हम मनुष्य है का गीत

और खबरें आती हैं ढेर सी

लगातार,बार बार

इस बोल में डूबी डूबी कि

हम मनुष्य हैं।


हमने एक बार गुनगुनाया कि

हम मनुष्य हैं

तो मौसम गुनगुना उठा

हम मनुष्य हैं की

बारहमासी धुनी पर।


हवाओं में तैरने लगी

हम मनुष्य की धुनि

पहाड़ मुस्करा उठे सुनकर

ये बोल कि

हम मनुष्य हैं।


धरती ने सुना

हम मनुष्य हैं के बोल

तो खुश हो उठी

जैसे माँ खुश होती है

हमे मुस्कराता हुआ देखकर

और आनन्द से विह्वल

हो उठती है

हमे ये बोल गुनगुनाता देखकर।


सुना है अंतरिक्ष से

जाने कितने आये हुये हैं

सुनने हम मनुष्य है का गीत

आंख मिलती है आंख से तो

गुनगुना उठती है वही

हमारा गाया हुआ गीत

बोल है।


हम मनुष्य हैं

गीतकार है समय

या इस युग की जरूरत।


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