हम किसान के बेटे हैं
हम किसान के बेटे हैं
हम किसान के बेटे हैं
मिट्टी में सपने बोते हैं
पूस की ठंडी रातों में
अक्सर मेड़ों पर सोते हैं !
हम किसान.....
तुम ए०सी० कमरों में बैठे
फसलों का मूल्य लगाते हो
बाढ़ में बह जाती फसलें
हम सब खेतों में रोते हैं !
हम किसान.....
सावन की बौछारों से
फसलों की हरियाली है
अन्न की लालच है अपनी
हम जेठ की गर्मी सहते हैं !
हम किसान.....
शहरी कचरों उद्योगों से
तुम प्रदूषण करते हो
जल गयी पराली थी मुझसे
उसका जुर्माना भरते हैं !
हम किसान......
समर्थन मूल्य दिखावा है
या अपनों की लाचारी है
मूल्य मिला व्यापारी को
हम अपनी हत्या करते हैं !
हम किसान..