हिस्सा
हिस्सा
कुछ सूखा है
कुछ गीला है
सारा ही
जिन्दगी का हिस्सा है
झूमता बचपन
खिलती जवानी
रोता बुढ़ापा
अहसासों के दामन से
लिपटा है वजूद सारा
फिर भी
न कुछ इधर है
न कुछ उधर है
है केवल मृगतृष्णा !
और फैला अनंत रेगिस्तान !
आशाओं से लिपटा
लालसाओं में डूबा
इच्छाओं के जाल में जकड़ा
बस यूं ही नज़र आ जाता है
कभी यहां से
कभी वहां से
सारे हिस्सों में बँटा
वो हिस्सा जो
कुछ सूखा है
कुछ गीला है
अलग-थलग
उजाड़
वीरान
बियाबान-सा होकर भी
जज़्बात की ज़मीन पर खड़ा
जिन्दगी का अहम् हिस्सा है !