हिन्दी की पुकार
हिन्दी की पुकार


सरल अभिव्यक्ति हूँ ,पर बात बड़ी मुझमें ।
यदि प्यार मिले सबका ,तो काम बड़े कर दूँ ॥
प्रेमपूरित रस से मदमाती हूँ ,रंचमात्र भी दंभ नहीं मुझमें ।
जो साथ मिले सबका , इतिहास नया रच दूँ ॥
देशी हूँ ,सहज हूँ,पवित्र हूँ,पर सबको अपनाती हूँ ।
जो स्नेह मिले अपनों का ,साहित्य नया लिख दूँ ॥
राधा की प्रीत हूँ ,मीरा का गीत हूँ ,सूर की वाणी हूँ तो कान्हा की बंसी हूँ
जो सुर -ताल मिले सबका,तो गीत नया रच दूँ ॥
अपनी हूँ ,सरल भी हूँ ,फिर एक दिन क्यों मनाते हो ?
जो हर दिन अपनाओ तो हिन्द का सरताज अमर कर दूँ ॥