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Vijay Kumar parashar "साखी"

Abstract

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Vijay Kumar parashar "साखी"

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हिंदी अच्छी लगती है

हिंदी अच्छी लगती है

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हिंदी मुझे अच्छी लगती है

हिंदी मुझे सच्ची लगती है

कहता हूं इसे अपनी माता,

यह मुझे जिंदगी लगती है

तेरे साथ से,तेरे हाथ से,

हृदय से वाणी निकलती है

हिंदी मुझे अच्छी लगती है

तू हिंदी बहुत ही सरल है,

तुझमे ममता का जल है

तेरे दूध से ही साखी की,

आवाज निकलती है

हिंदी मुझे अच्छी लगती है

जब-जब हिंदी सुनता हूँ,

मुझे मां की लोरी लगती है

हिंदी तू मेरी मां ही लगती है

तुझसे ही मेरी शब्दो की,

सांसे चढ़ती औऱ उतरती है

हिंदी मुझे अच्छी लगती है!



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