हिंद की माटी
हिंद की माटी
कुछ कह रही हैl मेरे हिंद की माटी,
थोड़ा मुस्कुरा रही है मेरे हिंद की माटी,
आज इतिहास के पन्ने फिर सरसराहट का शोर कर रहे थे,
हिंद पर मर मिटे उन वीर सपूतों की गाथा कह रहे थे,
अटल निश्चल वो उन्मुक्त विचार,
वो राष्ट्रवाद ,एकता और सदाचार,
नया भारत हमें मिल कर बनाना है,
भारत का कल हमें मिल कर लिखना है।।
कुछ कह रही है मेरे हिंद की माटी,
थोड़ा मुस्कुरा रहीं है मेरे हिंद की माटी,
उसमें टैगोर की लिखाई होगी,
जहां रानी लक्ष्मी बाई सी निडर नारी होगी,
गांधी जी के विचार होंगे,
बोस, भगत सिंह, चंद्र शेखर से बुलंद हौसले होंगे,
जहां अपराध ना छल होगा,
जहां सिर्फ भारत हर ओर हिंद लिखा होगा।।
कुछ कह रही है मेरे हिंद की माटी,
थोड़ा मुस्कुरा रहीं है मेरे हिंद की माटी,
यूं ही चलते चलते मिल जाएगी मंजिल हमें,
नए भारत की तस्वीर को रंग देंगे हर एक रंग में,
ये जज़्बा फिर बनाना है,
जो बाकी है श्रृंगार हिंद का वो पूरा कर के दिखाना है,
संस्कृति विलुप्त ना होने देंगे,
आंच कला पर ना आने देंगे,।।
कुछ कह रही है मेरे हिंद की माटी,
थोड़ा मुस्कुरा रहीं है मेरे हिंद की माटी,
करो ये प्रण अब,
राष्ट्र समर्पित है हम हर क्षण,
हो तूफान या दरिया का सफर,
पत्थर ,कांटों का न अब होगा कोई असर,
है निश्चल विचार हमारे,
कह दो हर एक से चौकन्ने खड़े है हिंद के रखवाले।।