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Rajiv Jiya Kumar

Abstract Classics Inspirational

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Rajiv Jiya Kumar

Abstract Classics Inspirational

⚡हैवानियत तारी है।===========

⚡हैवानियत तारी है।===========

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सङक पर पटक रहा वह सर

बदन कांप रहा थर थर,

हो रहे टेढे मेढे पल पल

उसके पैर और हाथ।।


न होती हालत ऐसी उसकी

गर होता उसे किसी का साथ,

सामने वह हलवाई

उसे हालत पर इस 

थोड़ी भी दया न आई।।


गुजर गए पास नेताजी भाई

हालत देख उन्हेें आई उबकाई,

गुजरते अगल बगल से वे राहगीर 

बेखबर,बेरहम कि पड़ा बेसुध 

इस राह पर,इस राह का बगलगीर।।


मैं हैरान उस तक आया

सहलाया दबाया 

चेतना उसकी लौटी

मानो नवजीवन उसने पाया,

पर था अब मैं घबराया 

कि नियति क्या होगी यही हमारी

हैवानियत होगी क्या यूँ ही तारी।


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