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Supriya Devkar

Abstract

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Supriya Devkar

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है कोई यहां

है कोई यहां

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है कोई यहां तो बता दे ऐ हवा 

मुझे भेज दे अकेलेपन की दवा ,

लाचार जिदंगी से ऊब गया हूँ

तेरे दरपे आने की सोचता हूँ,

ना जाने कितने इम्तहान आयेंगे 

अपने यूं ही साथ छोड जायेंगे,

कैसे रखे सब्र बताए कोई

जख्मो पे मरहम लगाए कोई,

मायूसी छा जाती है जब 

आसमान को देख लेते हैं तब,

बदलकर दिन कभी रूकता नहीं

सामने किसी के कभी झुकता नहीं, 

हौसला बढ जाता है मेरा 

खिल जाता है चेहरा मेरा,

छोड़ देता हू मायूसी का कफ़न 

सारे गम कर देता हू दफ़न!



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