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Vijay Kumar parashar "साखी"

Abstract

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Vijay Kumar parashar "साखी"

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हाथ थामकर चलो

हाथ थामकर चलो

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आपस मे हाथ में हाथ देकर चलो

एक दूसरे को सब पकड़कर चलो

हर जगह जीत बस आपकी होगी,


एक दूजे का हाथ थामकर चलो

हर मन्ज़िल आपका पीछा करती होगी,

एक साथ कदमों को लेकर चलो

अकेले को तो कोई भी रुला देता है


पर झुंड तो शेरों को भी हरा देता है

परिवार में रहकर जीतते चलो

आपस में हाथ में हाथ देकर चलो

एक लकड़ी तब कमजोर है,


जब अकेली लगाती वो जोर है

गठ्ठे में रहकर मजबूत होते चलो

बिना नींव के हर मकान होता अधूरा है

एक मजबूत नींव से मकान होता पूरा है

मजबूत मकान के लिए,


नींव में पत्थर डालते चलो

आपस मे हाथ मे हाथ देकर चलो

जिंदगी भी गाती बस यही गीत है

बिना सुरों के नही बनता संगीत है


सबके स्वर में स्वर मिलाते चलो

जिंदगी को मुस्कुराकर जीते चलो

आपस में हाथ में हाथ देकर चलो

एक दूसरे को सब पकड़कर चलो।


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