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Sapna K S

Abstract

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Sapna K S

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हार चुके हो तुम...

हार चुके हो तुम...

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सुनो.....

तुम ,हाँ...तुम खुद मेरी जिंदगी से जा चुके हो ना....

बहुत कोशिश की थी, तुम्हें रोकने की...

गिड़गिड़ाई थी...भिख माँगी..मुझे यूँ ना छोड़ जाने के लिए.....

ना जाने वो मेरी कौन-सी बेवफाई तुम्हें दिख गयी थी....

जिस कारण मुझसे तुम्हारा भरोसा ही ना रहा...

चलो ....कोई नहीं....वैसे तुम ही कहा करते थे ना...

के तुम मेरे लायक नहीं हो....

मुझे तुम्हारे सच मान लेना चाहिए था ना....

तुम बेवफा होते तो गम ना था.....

गद्दारी की है...तुमने मेरे खुशियों से.....

ना जाने इस में तुम्हारा कौन सा स्वार्थ था....

खैर...अब जाने दो....

अब मुझसे तुम्हारा इंतजार नहीं होता...

थक चुकी हैं आँखें और मेरी तनहा राते रो-रो कर....

भरोसे को तुम इतना तोड़ जाओगे ...सोचा भी ना था....

अच्छी बात है....अरे! बहुत अच्छी बात है.....

अरे! रूको..एक बात और तो सुनलो.....

लौट के तुम तो आना ही नहीं....अब मैं नहीं अपना सकती हूँ तुम्हें....


हाँ....बहुत बदनसीब हो तुम यार....

तुम्हारा प्यार तुम पा ना सके....और प्यार तुम्हें दस्तक दे रहा था.....

बरबाद कर चुके हो तुम....


तुम मुझे अपनी जैसी बनाने का दावा करते थे ना....तो सुन लो तुम सी बदनसीब मैं नहीं.....

मेरे मुहब्बत की दस्तक मैं नहीं ठुकराऊँगी....

चाहे वक्त लगे मुझे उसे अपनाने में.....साथ रहूँगी उसके....आखरी साँस तक.....

हार चुके हो तुम.......और मैं.....


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