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Ashok Goyal

Inspirational

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Ashok Goyal

Inspirational

गज़ल

गज़ल

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कैसे कैसे अज़ाब देखते हैं ।

फिर भी जीने के ख़ाब देखते हैं ।


ऐसे जीते हैं ज़िन्दगी यारों ।

रोज़ अपना हिसाब देखते हैं ।


छोड़ो, शिकवे, गिले अँधेरों से ।

अब नया आफ़ताब देखते हैं ।


जिसमे तहरीरें हैं बुजुर्गों की ।

रोज़ हम वो किताब देखते हैं ।


तुम को आदत है ख़ार देखने की ।

और हम, बस गुलाब देखते हैं ।



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