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Divya Gehlod

Romance

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Divya Gehlod

Romance

गुज़ारिश

गुज़ारिश

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वो शख्स जिसकी आकृति बसती मेरे जेहन में है,

है वही बसता मेरी कविताओं की धड़कन में है।


उस भूति की अनुभूति इस चंचल ह्रदय में व्याप्त है ,

जिसकी सुनहरी यादो का दीदार ही पर्याप्त है ,

जिसकी इक मुस्कान से शुरू होती है मेरी सुबह ,

इक बूँद अश्रु गर गिरे तो ज़िन्दगी ये समाप्त है,

जिसके बिना की कल्पना से मेरा मन उलझन में है ,

है वही बसता मेरी कविताओं की धड़कन में है।


जिंदगी मांगी थी जिससे बहाने-ए-चार में

दो आरज़ू में कट गए, दो कट गए इंतज़ार में,

जिसके कारण ही चली थी कश्तिया मंझधार में

वो शख्स शायद एक ही है, शख्स-ए-हज़ार में,

क्या पता तेरा ठिकाना दिल में या लन्दन में है ,

पर तू ही बसता मेरी कविताओं की धड़कन में है।


एक गुज़ारिश पर लिखूं महाकाव्य मैं तेरे लिए ,

एक गुज़ारिश मेरी भी स्वीकार कर मेरे लिए ,

जैसे नभ में चाँद खिलता मुस्कुराता रात भर ,

ठीक वैसे मुस्कुराना उम्रभर मेरे लिए,

फिर उठा तूफ़ान कोई वादी-ए-गुलशन में है ,

है तू ही बसता मेरी कविताओं की धड़कन में है।



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