गुज़ारिश
गुज़ारिश
वो शख्स जिसकी आकृति बसती मेरे जेहन में है,
है वही बसता मेरी कविताओं की धड़कन में है।
उस भूति की अनुभूति इस चंचल ह्रदय में व्याप्त है ,
जिसकी सुनहरी यादो का दीदार ही पर्याप्त है ,
जिसकी इक मुस्कान से शुरू होती है मेरी सुबह ,
इक बूँद अश्रु गर गिरे तो ज़िन्दगी ये समाप्त है,
जिसके बिना की कल्पना से मेरा मन उलझन में है ,
है वही बसता मेरी कविताओं की धड़कन में है।
जिंदगी मांगी थी जिससे बहाने-ए-चार में
दो आरज़ू में कट गए, दो कट गए इंतज़ार में,
जिसके कारण ही चली थी कश्तिया मंझधार में
वो शख्स शायद एक ही है, शख्स-ए-हज़ार में,
क्या पता तेरा ठिकाना दिल में या लन्दन में है ,
पर तू ही बसता मेरी कविताओं की धड़कन में है।
एक गुज़ारिश पर लिखूं महाकाव्य मैं तेरे लिए ,
एक गुज़ारिश मेरी भी स्वीकार कर मेरे लिए ,
जैसे नभ में चाँद खिलता मुस्कुराता रात भर ,
ठीक वैसे मुस्कुराना उम्रभर मेरे लिए,
फिर उठा तूफ़ान कोई वादी-ए-गुलशन में है ,
है तू ही बसता मेरी कविताओं की धड़कन में है।

