गुरू
गुरू


गुरु वास्तविक अमृत है ।
गुरु जीवन का चतुरानन है।।
अपकार नहीं करता किसी का,
गुरु ज्ञान के हम परिचारक है।
यत्न करता है उपकार करने का,
भविष्य रचने का हुनर रखता है।
अवधि संग चलना सिखाता ,
ग़लतियों का आभास कराता है।
अनुपम है वह सारे जग में,
शुभचिंतक वह सबका है।
ज्ञान प्रदान कर हमें बढ़ाये ।
पर स्वयं उसी स्थान पर है।
याम करता रात्रि के बाद ,
अंधेरे जीवन में प्रकाश सा है।
जिसने हाथों में है कलम थमाई ,
उसका सम्मान करने की अरदास सबसे है।