पुष्प
पुष्प
1 min
60
कभी खिलता हूँ किसी डाली में ,
कभी मिलता हूँ किसी नाली में,
कभी किसी प्रेमी के हाथ में,
कभी किसी अलक की जुल्फों के साथ में।
कभी किसी आवागमन के पथ पर,
कभी किसी सज्जन के रथ पर,
कभी किसी भवरे के लिए रस बनता हूँ ,
कभी रूठे को मनाने रोज जाता हूँ ।
कभी किसी किताब में याद बनकर सूख जाता हूँ ,
कभी किसी के हाथों से होकर ईश्वर को पाता हूँ ,
कभी लोग मुझे देख मुस्कुराते है ,
कभी मुझे अपना पसंदीदा बताते हैं ।
कभी जन्म, मरण, शादी के बंधन में डाला जाता हूँ,
कभी किसी के मलयज में तो कभी कीचड़ में पाया जाता हूँ,
कभी खिलूं तो खुश्बू फैलाता हूँ,
कभी गिरूँ तो निर्माल्य बन जाता हूँ।