गुरुपूर्णिमा
गुरुपूर्णिमा


गुरु ही है जो गुरूर करने के लायक बनाता है
गुरु ही है जो गुरुर से दूर कराता है
गुरु है तो श्रद्धा है विश्वास है
गुरु नहीं तो जीवन मात्र श्वास है
गुरु आध्यात्मिक भी है, सांसारिक भी
गुरु प्रकट भी है और मानसिक भी
मात, पिता, भातृ, सखा, बहने और भी
पूरा परिवार ही तो गुरु बनता है पहला
फिर तो जीवन में आये बहुत से गुरु
कुछ ने लिखना सिखाया कुछ ने पढ़ना,
लिपि का कारीगर किसी ने मुझे बनाया
तो कुछ ने वाणी में पियूष है मिलाया
कुछ थे जिन्होंने विचारों को दी विशालता
व्यावहारिक बनाया किसी ने
तो किसी ने सिखाई चतुरता
कुछ ने मुझे छल के भी मुझे कुछ न
कुछ सिखाया है
गुरुओं का आशीर्वाद ही है जो मेरा मन
मुझे मिल पाया है
कुछ व्यक्तित्वों से मुलाकात यूँ हुई अब तक
कि वो पारस थे मुझ में भी कुछ चमक भर गए
कुछ न कुछ तो मुझ में भी जादू सा कर गए
कृतज्ञ हो "कुहू" आज मानती हूँ आभार
ज्योति को जो रौशनी देने लायक कर गए