गुरु और ज्ञान
गुरु और ज्ञान
ज्ञान सभी के अंतर में,
बैठा पालथी मार।
प्रकट करने को ईश्वर आएँ,
धरकर गुरु अवतार।।
अंतरतम में बैठी चेतना,
सोया रहता ज्ञान।
अपनी क्षमता का सदा,
गुरु दिलाए ध्यान।
गुरु ही बनते हैं,
निज शोधन का आधार।।
ज्ञान सभी के अंतर में,
बैठा पालथी मार।।1।।
गुरु बन कृष्ण अर्जुन को,
गीता का पाठ पढ़ाए।
शिव हो जाए गुरु तो,
राम परशुराम बन जाए।
वेद व्यास बन गुरु,
बताते जीवन का सार।।
ज्ञान सभी के अंतर में,
बैठा पालथी मार।।2।।
गुरु विश्वामित्र ने शिष्य हित,
किया शस्त्रों का आवाहन,
निर्दिष्ट किया अगस्त ने,
कब कहाँ हो संचालन।
विजय प्राप्त की राम ने,
जाकर लंका पार।।
ज्ञान सभी के अंतर में,
बैठा पालथी मार।।3।।
द्रोण के निर्देशन में ही,
अर्जुन बने धनुर्धारी।
रामानंद ने ही बनाया,
कबीर को अविकारी।
अज्ञानता अविवेक ही हैं,
शिक्षक के आहार।।
ज्ञान सभी के अंतर में,
बैठा पालथी मार।।4।।
गुरु की कृपा बिना तो,
मिल ना पाए ज्ञान।
कदाचित विद्या मिल जाए,
पर मिले नहीं सम्मान।
बहा दे गुरु सब अवगुण,
ज्यों नदिया की धार।।
ज्ञान सभी के अंतर में,
बैठा पालथी मार।।5।।