गुरु शिष्य का भाग्य विधाता
गुरु शिष्य का भाग्य विधाता
शिष्य के चरित्र का निर्माता,
ज्ञान, विद्या, बुद्धि का दाता।
जीवन के रहस्य बताता,
है गुरु शिष्य का भाग्य विधाता।।
कच्ची मिट्टी से घड़ा बनाए,
रूप उसे सुंदर दे जाए।
कच्चे मन को कर दे पक्का,
उसमें सोया विवेक जगाए।
एक खाली बर्तन को,
अमृत भरा पात्र बनाता।।
ज्ञान, विद्या, बुद्धि का दाता,
है गुरु शिष्य का भाग्य विधाता।।
सोचने समझने की शक्ति का,
वह उसमें संचार करे।
किस विधि जीवन गढ़ूं छात्र का,
नितप्रति यही विचार करे।
छात्र हित ही प्रति पल,
हृदय में उसके समाता।।
ज्ञान, विद्या, बुद्धि का दाता,
है गुरु शिष्य का भाग्य विधाता।।
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ज्यों कृषक खर पतवार निकाले,
गुरु हर दुर्गुण साफ करे।
शिष्यों की भूल को वो,
बनके माता माफ करे।
ज्ञान, विद्या, बुद्धि का दाता,
है गुरु शिष्य का भाग्य विधाता।।
प्रभु होकर भी कृष्ण,
सांदीपनी शरण में जाते हैं।
वशिष्ठ के चरणों में बैठ,
राम, राम बन जाते हैं।
द्रोण बन यह गुरु ही,
अर्जुन को धनुर्वेद सिखाता।।
ज्ञान, विद्या, बुद्धि का दाता,
है गुरु शिष्य का भाग्य विधाता।।
गुरु अर्थ में ही नहीं,
कर्म से भी बड़ा है।
छात्रों के हर संकट समक्ष,
रक्षा दुर्ग बन अड़ा है।
हर दुर्गुण से दूर रखे,
हर संकट से बचाता।।