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Krishna Khatri

Abstract

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Krishna Khatri

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गुड्डू बोला

गुड्डू बोला

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एक बार की बात है 

जब तुम्हारी डांट पर

आ रहा था रोना मुझको 

एक तो काम बहुत था

 

तबीयत भी ठीक नहीं थी 

आने वाले थे मेहमान 

रात के खाने पर 

ऊपर से तुम्हारी डांट


बस मिल गया 

बहाना रोने का !


नहीं-नहीं बहाना नहीं 

सच में आ रहा था रोना 

बैठी थी यूं ही कि -

आकर गुड्डू बैठ गया


गोदी में मेरी

अपने नन्हे हाथों से 

पोंछे आंसू मेरे 

तुतलाते हुए बोला


आप हमाले अथे बते

हम आपके अथे बातें

ऐसे नई लोते !

बस मुझको आ गई हंसी 

रोते-रोते भी।


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