STORYMIRROR

SRINIVAS GUDIMELLA

Abstract

4  

SRINIVAS GUDIMELLA

Abstract

गरीबी

गरीबी

1 min
388


ये हैं गरीब ये है भूके

पेट है खाली होंठ है सूखे

झूठे सपने देखे सो के

ज़िंदा लाशें धरती मायके !


कभी मिलेगा थोड़ा खाना

कभी पडेगा भूका सोना

कभी है हँसना कभी है रोना

जीवन का ज़हर मुश्किल है पीना !


कौन करेगा इनसे प्यार

दर दर फिरते खाये ठोकर

बिगड़ी हुई हैं इनके तक़दीर

गरीबी का ये है तस्वीर !


फटे है कपडे नहीं ठिकाना

जीनेको बहाये खून पसीना

आसूं है पीना ज़ख्मे है

मुश्किल है जीना मुश्किल है मरना !


वाहरे खुदा तेरी खुदाई

काहेको तू गरीब बनायी

आमिर के राहों को फूलों से

गरीब के राहों में कांटे क्यों बिछाई !


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract