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SRINIVAS GUDIMELLA

Abstract

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SRINIVAS GUDIMELLA

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जंगल में मंगल

जंगल में मंगल

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एक शाम जब गया था दिन ढल 

चल रहा था अकेला पैदल 

खोगया रास्ता पहुंचा जंगल 

लगने लगा डर अब मुझे पल पल !


नींद के मारे अचानक सो गया 

खाबो की सुनहरी दुनिया में खो गया 

पता नहीं कौन आया और गया 

इतनेमें फिर सवेरा हो गया !


निकला सूरज खो गया चाँद 

फिर भी मेरे आखें थे बंद 

मेघा से गिरा जो पानी का बूँद 

खोला मैं आँखें उड़गया नींद !


हर तरफ थे खिलते कलियाँ 

उड़ते रंगबिरंगी तितलियाँ 

तेज़ी से चलते लहरों की गालियां 

करीब से देखा मैं अजीब सी दुनिया !


बाघों में भागा बांके मैं पागल 

सूना मैं तोता और मैना के बोल 

मीठे गीत जो गाया कोयल 

ख़ुशी से झूमा मेरा ये दिल !


पेड़ पौधे और ऊंचे परबत 

यह सब है कितने खूबसूरत 

मोर जो नाचा हुआ क़यामत 

देखा इनमें कुदरत की सूरत !


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