जंगल में मंगल
जंगल में मंगल
एक शाम जब गया था दिन ढल
चल रहा था अकेला पैदल
खोगया रास्ता पहुंचा जंगल
लगने लगा डर अब मुझे पल पल !
नींद के मारे अचानक सो गया
खाबो की सुनहरी दुनिया में खो गया
पता नहीं कौन आया और गया
इतनेमें फिर सवेरा हो गया !
निकला सूरज खो गया चाँद
फिर भी मेरे आखें थे बंद
मेघा से गिरा जो पानी का बूँद
खोला मैं आँखें उड़गया नींद !
हर तरफ थे खिलते कलियाँ
उड़ते रंगबिरंगी तितलियाँ
तेज़ी से चलते लहरों की गालियां
करीब से देखा मैं अजीब सी दुनिया !
बाघों में भागा बांके मैं पागल
सूना मैं तोता और मैना के बोल
मीठे गीत जो गाया कोयल
ख़ुशी से झूमा मेरा ये दिल !
पेड़ पौधे और ऊंचे परबत
यह सब है कितने खूबसूरत
मोर जो नाचा हुआ क़यामत
देखा इनमें कुदरत की सूरत !