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गर्द और गुलदस्ता

गर्द और गुलदस्ता

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गुज़रते हुऐ सड़क से,

इक मंज़र यूँ दिखा।

गर्द के बीच कूड़ेदान में,

इक गुलदस्ता सा दिखा।


फूल अभी ताज़े ही थे,

पत्तियां भी हरी थीं।

जिसने भेजा था उसके,

अरमानों से भरी थीं।


लगा इक दफ़ा,

बागवाँ ने प्यार से सींचा हैं इन्हें।

कहाँ पता था उसे,

इक दिन गर्द में जाना हैं इन्हें।


दूरियां दिलों मे होती हैं,

अक्सर फूल क्यूँ फेंके जाते हैं।

जिन्हें चाहोगे आप जितना,

वो उतने ही दूर जाते हैं।


'मन' को भी लगा,

जाकर उसे बता दूँ।

उसका तोहफ़ा गर्द में है,

लाकर उसे दिखा दूँ।


किसके पास जाता,

उदास था किसके लिए।

ये शहर मेरा नहीं था,

शख्स अनजान थे मेरे लिए।


यूँ ही होता गया ग़र,

बढ़ता गया ये रोग।

फिर न बचेंगे फूल,

न रहेंगे लोग।


दुनिया बैरंग हो जायेगी,

बाग़ उजड़ जायेंगे।

जो पास हैं आपके,

वो लोग बिछड़ जायेंगे।


संभालिये उन फूलों को,

जिंदगी का हिस्सा है।

न मेरा न आपका,

ये हम सबका किस्सा है।


गुज़रते हुऐ सड़क से,

इक मंज़र यूँ दिखा।

गर्द के बीच कूड़ेदान में,

इक गुलदस्ता सा दिखा।


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