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Charu Upadhyay

Abstract

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Charu Upadhyay

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गम क्यों

गम क्यों

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ज़िंदगी हसीन हो सकती थी 

जो ना हुई तो गम क्यों ? 

सिमटी सुलझी हो सकती थी 

जो ना हुई तो गम क्यों ?


हम प्यासे-प्यासे फिरते हैं 

सपनों में जीते - मरते हैं 

ये प्यास बुझी हो सकती थी 

जो ना हुई तो गम क्यों ?


ये ख़्वाबों में जी सकती थी 

जो ना हुई तो गम क्यों ?

हम रोते-रोते फिरते हैं

हम रातों में भी जगते हैं


ख़ुशियों की शाम हो सकती थी

जो ना हुई तो गम क्यों ?

तारों की रात हो सकती थी 

जो ना हुई तो गम क्यों ?


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