गम क्यों
गम क्यों
ज़िंदगी हसीन हो सकती थी
जो ना हुई तो गम क्यों ?
सिमटी सुलझी हो सकती थी
जो ना हुई तो गम क्यों ?
हम प्यासे-प्यासे फिरते हैं
सपनों में जीते - मरते हैं
ये प्यास बुझी हो सकती थी
जो ना हुई तो गम क्यों ?
ये ख़्वाबों में जी सकती थी
जो ना हुई तो गम क्यों ?
हम रोते-रोते फिरते हैं
हम रातों में भी जगते हैं
ख़ुशियों की शाम हो सकती थी
जो ना हुई तो गम क्यों ?
तारों की रात हो सकती थी
जो ना हुई तो गम क्यों ?
