रंग औघड़ी चढ़ गया
रंग औघड़ी चढ़ गया
अब रंग औघड़ी चढ़ गया,
तो फगुआ कहां से भाये रे
अब अंग भस्म है चढ़ गया,
तो लाली कहां से आये रे
बाघम्बर तन पे लिपट गया,
पीतांबर कहां से छाए रे
अब जटा सा मन है सिमट गया,
जुल्फें रेशम ना चाहे रे
डमरु की धुन पे डमक गया,
कहां मुरली समझ में आये रे
तन गंगा में है भींग गया,
जमुना का स्वाद क्या पाए रे
मन साधु चौघड़ी रम गया,
क्या रास मजा अब लाए रे
"नटराज" सा मन है नाच गया,
"नटवरी" भी नैन बिछाए रे।
