तन्हा कटी राहें
तन्हा कटी राहें
बड़ी तन्हा कटी राहें,
तब कुछ गलियारे याद आए।
बचपन में बनारस की शाम और,
पानी में खेलते फुहआरे याद आए।
हुआ करते अपनी माँ के सबसे खास हम,
लगे दिल पे चोट
तो उनकी दुआएँ याद आयें।
दिखावे भरे गैरों के साथ हंसकर,
यूंही बैठे हुए आज,
बिछड़े साथी याद आए।
सखी घर दोपहर की मैगी, तो रात
पड़ोस वाली दीदी की तहरी याद आए।
अब तो अपना सच्चा कैसे किसे कहें हम ?
कुछ चेहरे पे मुस्कराए...
तो किसी को हम ज़रूरत में याद आए।
