गलती
गलती
दोस्तों का साथ था
अपनो का था प्यार,
एक प्यारा सा घर मेरा
और प्यारा सा परिवार।
सोचते ही होती थी पूरी
हर छोटी से छोटी मांग,
बचपन बडा सुहाना था
हर बात किसी का माना था।
दुखः तो कभी मिला नहीं
ना चिंता का आना जाना था,
फिल्मों और फैशन के नाम पे
एक नया शौक मन भाया था।
स्टाइल और फैशन के नाम पे
धुम्रपान अपनाया था,
दुकान से लेकर दो रूपये में
नशे को साथी बनाया था।
खुशी खुशी से रहनेवाला
डिप्रेशन को गले लगाया था,
जलती रहती छाती मेरी
धुएं से उसको तपाया था।
ना चाहते हुए भी मैंने
कैंसर से हाथ मिलाया था,
बिमारी से घिरता रहा मैं
खतरे मे जीवन डाला था।
धुम्रपान से होती है मृत्यु
पढ़कर मैं घबराया था,
ना चाहते हुए भी मैंने
जीवन अपना जलाया था।
जो गलती की है मैंने
उसपे अब पछताना था,
इस कविता को लिखकर,
अब सबको समझाना था।
