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गलत आदमी

गलत आदमी

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तूटा हुआ हुं तारा, फूटा हुआ फलक हुं

बेझीकली, मैं आदमी ही गलत हुं

कुछ देखना या केहना, या सिर्फ चुप भी रेहना

सब कुछ है मेरी गलती, इन सांसों का भी चलना


गुनेहगार मैं बहोत सी, दफाओं के तेहत हुं

बेझीकली, मैं आदमी ही गलत हुं

हर रोज़ अपने कुछ मैं, अरमान मारता हुं

मुझे आदमी तो समजो, बस इतना चाहता हुं

बस प्यार का हुं भूखा, प्यासा भी मैं बहोत हुं

बेझीकली, मैं आदमी ही गलत हुं


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