मैं पागल
मैं पागल
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ये खयाल तीर बनकर मेरे दील मे धंसा जाये
मैं पागल हो जाउं तो कीतना मज़ा आये
पुछेगा नहीं कोइ, के मैं कुछ क्युं करता हुं
जी भर के हसुंगा मैं, बीना वज़ह बताये
पागल की हरकतों का कोइ सबब ना होता
दील खोल के मैं रोउं, ना कीसी का ध्यान जाये
हर कीसी से अपने दील की, दास्तान खोल दूंगा
सच झूठ की फीकर में, कोइ ना जान खाये
बहोत बोज़ बढ गया है, अब 'निल' मेरे दील पर
काश ! मौत से पहेले, पागलपन आ जाये