ग़ज़ल
ग़ज़ल
क्या वज़ह है क्यूं मुस्कराया जा रहा है
कौन जाने अब क्या छुपाया जा रहा है
जल रही है आँखें बरसों जागकर और
मुझे धूप में आईना दिखाया जा रहा है
फिर मिलेगी रात से बिछड़ी हुई चांदनी
चांद को फिर छत पे बुलाया जा रहा है
तू नही है मैं भी नही फिर किसके लिए
सेज पे रेशमी चादर बिछाया जा रहा है
बे-रहम सी हो गई है अब तितलियां भी
भंवरों की महफ़िल में बताया जा रहा है.