ग़ज़ल
ग़ज़ल
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हसीन फूल रंगीन क़बाओ को तराशे हुए
निकल पड़े है राह-ए-इश्क़ मुस्कराते हुए
दिल पे ज़ख्म सर पे सलीब लिए फिरते हैं
अज़ब अपना हाल हुआ वफ़ा निभाते हुए
उम्र-ए-गुरेजां है, रंज-ओ-मेहनत से शग़फ़
वक्त होता तो देख लेते उसे आते-जाते हुए
आतिश-ए-इश्क़ हो कि हसरतों की तपिश
हाथ तो हर हाल में जल जाएंगे बुझाते हुए.
क़बा - वस्त्र , सलीब-सूली , उम्र-ए-गुरेजां -भागती हुई ज़िन्दगी , शग़फ़- लगाव