ग़ज़ल
ग़ज़ल
मैं गया तो था लौटकर ना आने को
पर वो आ गया ख़्वाब में मनाने को
बहुत मुश्किल से लबों पे हँसी लाए
वक़्त तैयार खड़ा है फिर रुलाने को
उसकी हर याद मिटा दी मेरे दिल से
बस कुछ खत रह गए है जलाने को
इतने ना-समझ तो नही थे तुम कभी
दवा समझ के ज़हर लाए पिलाने को
अभी-अभी तो हमनें दरिया में उतारी
औऱ वो आ गए है कश्तियाँ डुबाने को।