गजल
गजल
जमीं से आसमां तक के नजारे लिख रहा हूँ मैं
तुम्हारे वास्ते ही चांँद - तारे लिख रहा हूँ मैं
मेरी नज़रों से तुम देखो जो मेरे इश्क़ की चाहत
तुम्हारे ही हसीं ख्व़ाब सारे लिख रहा हूँ मैं
दरीचे से जो दिखता है तुम्हारा नूर सा चेहरा
वही सारे जो किस्से हैं तुम्हारे लिख रहा हूँ मैं
गुज़रती हो जिधर से तुम वो रस्ता महकता है
उन्ही रस्तों पे कुछ नग़मे हमारे लिख रहा हूँ मैं
बग़ीचे में तुम्हें देखूँ और फूलों सा मैं खिल जाऊँ
कहीं पर बैठकर दरिया किनारे लिख रहा हूँ मैं।

