STORYMIRROR

Ullas Pandey

Romance

4  

Ullas Pandey

Romance

ghazal ,romance

ghazal ,romance

1 min
266

जमीं पे बैठकर पत्थर तराशता हूं मैं

वो इक मूरत जिसे दिनभर संवारता हूं मैं


कमाल शख़्स है वो बात भी नहीं करता 

कमाल ये भी ,उसे हर पल पुकारता हूं मैं


वो तो आंसू भी मेरे पोंछने नही आता

कभी जब उसके गिरे तो संभालता हूं मैं

 

मेरे अपनों से मिरा ना जानें कैसा बैर है

जो अपने आप को हर दिन बिगाड़ता हूं मैं।


Rate this content
Log in

More hindi poem from Ullas Pandey

Similar hindi poem from Romance