गिरगिट
गिरगिट
ग़ौर से देखा बार बार !
एक नया मुखौटा, हर बार !
लकीरें उम्र की, कहती अबूझ सी कहानी !
झूठेपन का विज्ञापन लगाए, एक होर्डिंग सा !
इंसान का रूप धरे, मानो दानव कोई !
मायावी विद्या में माहिर !
भलाई का दिखावा करता, लुटेरा!
हकीक़त यही! क्या यही असली चेहरा मेरा ?
पल पल रूप बदलता, मायावी !
बस ग़ौर से देखता हूँ,
अपना ! गिरगिट सा रंग बदलता चेहरा !
