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Dr Jogender Singh(jogi)

Abstract

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Dr Jogender Singh(jogi)

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गिरगिट

गिरगिट

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ग़ौर से देखा बार बार !

एक नया मुखौटा, हर बार !

लकीरें उम्र की, कहती अबूझ सी कहानी !

झूठेपन का विज्ञापन लगाए, एक होर्डिंग सा !

इंसान का रूप धरे, मानो दानव कोई !

मायावी विद्या में माहिर !


भलाई का दिखावा करता, लुटेरा!

हकीक़त यही! क्या यही असली चेहरा मेरा ?

पल पल रूप बदलता, मायावी !

बस ग़ौर से देखता हूँ, 

अपना ! गिरगिट सा रंग बदलता चेहरा !



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