गीत
गीत
गीत
खट्टी छाछ पिलाएंगे
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चले जाइये गाँव में अब भी,
खट्टी छाछ पिलाएंगे।
खटिया डाले पेड़ के नीचे,
घंटों ही बतियाएंगें।
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शहरों वाली भाग दौड़ से,
अब भी गाँव अछूते हैं।
घर चाहे कच्चे हैं उनके,
चाहे छप्पर चूते हैं ।।
चौपालों पर गपशप करते,
कई लोग मिल जाएगें।
चले जाइये गाँव में अब भी ,
खट्टी छाछ पिलाएंगे ।।
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बाल विवाह की परंपरा है,
गाँवों के, हर घर घर में ।
घूंघट काढ़े बाल वधुएँ ,
मिल जाएगी छप्पर में।।
विधि विरुद्ध इस परंपरा को,
इक दिन हम दफनाएंगे ।
चले जाइये गाँव में अब भी,
खट्टी छाछ पिलाएंगे ।।
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मेहमानों का दर्जा लोगों ,
गाँवों में ईश्वर जैसा ।
हों मेहमान किसी के भी वे ,
आदर पाते घर जैसा ।।
ठंडा गरम पिलाते पहले ,
तब मकसद पर आएंगे ।
चले जाइये गाँव में अब भी,
खट्टी छाछ पिलाएंगे ।।
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मात पिता डांटे बच्चों को,
होते
वे नाराज़ नहीं।
इज़्ज़त करते लोग बड़ों की,
कोई भी मोहताज नहीं।।
ओल्ड होम की बातें अपने,
कान नहीं सुन पाएंगे।
चले जाइये गाँव में अब भी ,
खट्टी छाछ पिलाएंगे।।
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घपले घोटालों से छल से ,
और मिलावट बाजी से ।
भोले भाले लोग दूर हैं,
मुल्ला पंडित काजी से।।
सत्य जहाँ स्वभाव गाँव में ,
क्यों कर कसमें खाएंगे ।
चले जाइये गाँव में अब भी ,
खट्टी छाछ पिलाएंगे ।।
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जहां पड़ोसी धर्म निभाया ,
जाता है, हमदर्दी है।
शहरों जैसी नहीं गाँव में ,
अब भी गुंडागर्दी है।।
ऐसे गाँवों के हम तुम सब,
मिलकर के गुण गाएंगे।
चले जाइये गाँव में अब भी ,
खट्टी छाछ पिलाएंगे।।
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जिनको हवा लगी शहरों की,
"अनन्त"अब परिवर्तन है।
रहे गाँव वे कहने के बस,
कम होता अपनापन है।।
जिन गाँवों ने करवट ली ह,
शहरी बीन बजाएंगे ।
चले जाइये गाँव में अब भी,
खट्टी छाछ पिलाएगे ।।
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