गीत
गीत
कभी सोचता हूं मैं
कि ,अकेला, तन्हा हूं मैं।
कहां से चला था मैं,
आज, पहुंचा कहां हूं मैं।
सुनहरे से थे, कभी वो पल,
अब बीते हुए हैं वो पल।
कभी सोचता हूं मैं,
कौन हूं, क्या कहूं मैं।
कहां से चला था।
ऐ काश ! फिर से आ जाते,
मेरे दिल का करार बनकर।
पलकों पे मैं छुपा लेता,
आंखों में रख लेता संजोकर।
कभी सोचता हूं मैं,
कि क्यों बना हूं मैं !
जब मैं अकेला ही था,
फिर क्यों अकेला, तन्हा हूं मैं।
