ग़ज़ल
ग़ज़ल
ज़िन्दगी इस भ्रम में जाएगी...
आएगी, आएगी, वो आएगी....
सुबह की शाम आ गई है तो...
शाम की सुबह भी तो आएगी...
मारना चाहती है जो मुझको...
एक दिन मर तो वो भी जाएगी...
मैं सफ़र में रहूँगा साठ बरस...
बद-नसीबी कहाँ तक आएगी?...
भूख, सहरा निगल कर आई है...
प्यास, दरियाओं को मिटाएगी...
दोस्तो ! ज़िंदगी की कद्र करो...
मौत इज़्ज़त से पेश आएगी...
