ग़ज़ल
ग़ज़ल
दर्द मिला तो अच्छे अच्छे टूट गए
जेब फटी तो रिश्ते नाते टूट गए
खुल्ली आँखों से देखा पर महँगे थे
मुफ़लिस के यूँ कितने सपने टूट गए
हुआ ग़रीबी में फिर से आटा गीला
बचे हुए थे जो दो मटके टूट गए
बहुत जमा होने का ये भी हुआ असर
नदियों के कमज़ोर किनारे टूट गए
बुलंद हौसलों से ही बना मुकद्दर है
जिनके थे कमज़ोर इरादे टूट गए
ख़्वाब हमारे शीशे जैसे न थे कमल
पत्थर जो भी इनपर बरसे टूट गए।