ग़ज़ल
ग़ज़ल
कौन डरता है दिल लगाने से
डर तो लगता है टूट जाने से
इन हवाओं के गुनगुनाने से
बजने लगते हैं ज्यूँ तराने से
छोड़ा दामन खुशी ने जब मेरा
लग गए दर्द आके शाने से
शिद्दते ग़म की इंतहा ऐसी
ज़ख़्म रिसते हैं मुस्कुराने से
आज गर्दिश में हैं सितारे तो क्या
दिन वो आएंगे फिर सुहाने से
दरमियां है यक़ीन का रिश्ता
टूट जाएगा आज़माने से
रह्म करना ख़ुदाया बच्चों पे
रौनकें उनके खिलखिलाने से
दरबदर ख़्वाब हो रहे मेरे
नींद आती नहीं ठिकाने से
भरता सागर भी मिल के बूंदों से
क्या नहीं होता एक दाने से
जाने आएगा मेरा क़ासिद कब
मुन्तज़िर हूँ मैं इक ज़माने से
हो गयी लो ग़ज़ल पूरी
चंद लफ्जों के ताने बाने से।
ग़ज़ाला तबस्सुम
