गाय की पीड़ा
गाय की पीड़ा
बचपन से तो यही सुना था
गाय हमारी माता है
बड़ा हुआ तो मन मैं आया
काटा क्यों इसे जाता है
कई जगह तो यूं देखा है
को कूड़ेदानों में ।
जो माता थी आज तो है वो
सड़को के चौराहों मैं
चौराहों पर भटक भटक कर
पेट यह अपना पालती है
पानी अगर कोई इसे दे दे
समाज में यह अभिशापी है।
इसी गाय को मार पीटकर
घरों से अपने भगाते हैं
गाय का दूध ही पीकर ये।
अपना परिवार चलाते हैं।
