एक स्पर्श
एक स्पर्श
उसकी पलकों से उतरकर,
जब मेरी नजर उसके चेहरे पर फ़ैल गयी,
तो याद आया,
पिछली बार तो इस छवि पर
कुछ रेघरियाँ सी थीं,
और उससे भी पिछली बार तो,
उमंग की, उत्साह की रेखाएँ
अपने होने का सबूत दे रही थी,
लेकिन आज वो दिव्य आलोक
न जाने कहाँ विलुप्त हो गया था,
अपने ही द्वंद्वों में खोया उसका मन
कभी उल्लास के गीत गाता तो,
चेहरे पर एक मुस्कान खिल जाती
कभी कभी वो आकाश में
न जाने कौन सा रहस्य खोजने लगती
तमाम द्वंद्वों में उलझते हुए उसका मन
संघर्ष कर रहा था
उसके अंदर का संघर्ष उसे कचोट रहा था
ऐसा कभी कभी हो जाया करता है उसके साथ
लेकिन उसके द्वंदों का जवाब था मेरे पास
आवश्यकता थी तो बस एक कोमल स्पर्श की
एक भरोसे के एहसास की
एक साथ की
एक मुस्कान की
उस स्पर्श से हमारा दिव्या प्रेम प्रकाशित हो रहा था।