एक रिश्ता मिसाल वाला
एक रिश्ता मिसाल वाला
मैं अक्सर रिश्तों में
खुद को सौंप देता हूं
पूरी तरह..
बिलकुल वैसे ही
जैसे मिलकर समंदर से
नदी खो देती है अपना वजूद।
हां...
खो देना अपना वजूद..
दुनिया इसे यही कहती है..
मगर मैं नहीं मानता
इसको..
मैने रिश्तों की कई
परिभाषाएं पढ़ी
कई कहानियां सुनी.
हर कहानी हर रिश्ते के दो अक्स
थे.
मगर हमेशा सबके द्वारा
उसका एक ही पहलू बताया गया..
या यूं कहो...
ऐसा किया गया जानबूझकर..
ताकि हर कोई इन असफल हुए
समाजी रीति रिवाजों का लबादा
ओढ़कर खुद की नग्नता
और सच्चाई को
सच की सबासाई से छुपा सके.
मैने बहुत पहले लिखा था..
कि
किसी भी रिश्ते में <
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इतनी दूरी बना के रखो
कि अगर वो रिश्ता टूटे...
तो तुम्हें तकलीफ न हो..
मगर अफसोस...
मैं खुद अपनी ही लिखी इन
लाइनों पर अमल न कर सका..
मैने निभाया जब
भी कोई रिश्ता...
तो खुद का वजूद
मिला दिया
उसके वजूद से..
और इसका मुझे
दिया गया सिला..
कि
मुझे तौला गया...
घमंड, मतलब, नफरत,षड्यंत्र
की उसी जमानाई तराजू से,
जिससे परखी जाती है
अकसर हर तस्लीम
रिश्ते की शुद्धता...
अब ऐसे में मुझमें मिलावटें
मिलना तो तय था..
मगर फिर भी... मैं
हारूंगा नहीं..
तब तक
जब तक एक ऐसी
परिभाषा नहीं गढ़
दूंगा..
किसी भी एक रिश्ते की..
"जिसकी मिसाल दी जाए..."