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Minal Aggarwal

Abstract

4  

Minal Aggarwal

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एक पल में

एक पल में

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कल तक मैं बिल्कुल ठीक थी 

अगला दिन धूमधाम से 

खुश होकर 

एक उत्सव की तरह ही मनाऊंगी 

यह सोच रही थी 

उसकी तैयारी करने में जुटी थी 


न जाने कितने ही अनगिनत अरमानों की 

एक सुंदर सेज सजा ली थी मन में 

बहुत उत्साहित थी कि 

जल्द से जल्द यह रात गुजर जाये और 

सुबह की किरण सूरज की 

खिड़की से छनकती 

मुझे छूकर 

मुझे सोते से जगाये 


शाम तक सब सही था 

देर रात तक सब कुछ मेरे मन 

मुताबिक चल रहा था पर 

सुबह होने पर 

सारा मंजर बदल गया था 

मेरी तबीयत 

बातें तो इसके पीछे बहुत सी रही होंगी पर 

बिगड़ने लगी थी लेकिन 

मैंने अकेले होने पर भी 

हिम्मत नहीं हारी 


सर्दी का मुझ पर एक जोरदार वार था पर 

यह सब भी अस्थाई था 

कुछ देर के लिए स्थाई सही पर 

यह बुरा समय भी गुजर ही जाना था लेकिन 

जो मैंने कल चाहा था 


वह हकीकत में संभव नहीं हो सका 

मेरी हालत एकाएक इतनी बिगड़ जायेगी 

इसका तो कल देर रात 

सोते समय तक भी 

मुझे कोई गुमान नहीं था 

यह तो एक छोटा सा उदाहरण है 

लेकिन 

जिंदगी का कोई पल 

कभी किसी की जिंदगी 

बना भी सकता है और 

बिगाड़ भी सकता है 

कई बार तो कोई भी 

अप्रत्याशित घटना 

जीवनचक्र को हमेशा के लिए 

बदल के रख देती है फिर 


किस बात पर होना चाहिए 

किसी को अभिमान या 

क्यों भविष्य को लेकर हम 

चिंतित होते रहें जब 

एक पल में बदल सकता है 

किसी के सपनों का जहां 

उसकी मंजिल 

उसके रास्ते 

उसका जीवन 


उसके हौसले 

उसका सब कुछ 

उसका मुकाम 

उसके काम 

उसके अनुमान

उसके अरमान 

उसकी पहचान

सच में उसका और उससे जुड़े लोगों का सभी कुछ।


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