एक पैग़ाम सास के नाम
एक पैग़ाम सास के नाम
सुनो सुनती जाना... जब किसी के
घर की रौनक अपने घर लाना।
मंडप की आग में ही जला देना
मन से परायेपन का भाव और बना लेना अपने दिल के
एक कमरे में बहू को बैठाने की जगह।
स्वीकार करना उसको उसकी नैसर्गिक सुगंध के साथ
और अपनी सुगंधी से उसकी श्वास सुवासित कर जाना...।
अगर भूल से भी कोई ले आये गुण तोलने का तराजू
बेझिझक उसे रखवा देना ड्योढ़ी के बाहर ही तब उसे अंदर बुलाना...।
तुम बनके तुलसी हर लेना उसका संक्रमण
और सीखा देना स्वयं तुलसी बनने का गुण...।
फिर रोप लेना उसे अपने पास जहां
आंगन में तुम करती हो निवास...।
ताकि वह भी पौढ़ते हुए सीखे घर के दोष, बाधा, हरने की कला
और घर बन जाये सुख-शांति, समृद्धि की शाला...।