सूरज के कर्ज़दार
सूरज के कर्ज़दार
हज़ारों करोड़ों आकाशगंगाएं उनमें हजारों करोड़ों तारे...।
मगर सब रखते हैं हज़ारों करोड़ों प्रकाश वर्ष की दूरी...।
कोई भी नहीं इतना करीब जो हताश रात को कर सके रोशन...।
जो नाउम्मीदी के अंधेरे में दिखाते तो हैं अपना वजूद
मगर असल में मिटा नहीं सकते एक भी इंच कालापन...।
किस काम का वो बड़प्पन वो चमक जो सिर्फ दिखता ही है
मगर जिनसे न तो मिलती है ऊर्जा ना ही दे पाते हैं वो जीवन की सम्भाव्य दशाएं...।
बेहतर है वो अदना सा सूरज जो बेशक छोटा है
मगर रोज लेकर आता है सवेरा अंधेरे में डूबती जिंदगी के लिए...।
प्रारब्ध से बंधे समय को नहीं रोक सकता दिन पर चढ़ती कालिख को नहीं रोक सकता
तो भी दे जाता है रोशनी चांद को सब्र बांधे रखने के लिए...।
बस एक अमावस ही काफी है उसकी अहमियत बताने के लिए
कि कितने कर्जदार हैं हम उसके हर रात के बाद सवेरा लाने के लिए...।